बेटी तू मेरी परछाई है
मुझ जैसी ही तो बनकर तू आसमां से आई है।
आने से तेरे मेरा आंगन महक गया
किलकारियों से तेरी मेरा तो आंगन चहक गया।
तेरी पायल की छम-छम घर की चारदीवारी में है समाई
इस मंज़र की गवाह ये दीवारें भी हैं बन पाई।
तू हँसे तो तेरे संग मैं भी हँसू
हर पल को तेरे संग मैं भी जियूँ।
खिलौने तेरे मुझे मेरा बचपन याद दिलाएँ
खेलती थी कभी मैं भी ऐसे ही ये मुझे बताएँ।
अब तू थोड़ी बड़ी हुई
स्कूल तू अब जाने लगी
मुझे भी मेरे स्कूल की यादें, मानों जैसे आने लगी।
जल्दी जल्दी से माँ अपना काम निपटाती है
आने से पहले तेरे ,मनपसंद खाना तेरा पकाती हैं।
समय तेरे आने का हो तो घड़ी बार-बार तकती है
दरवाजे खिड़कियों से माँ बार -बार बाहर झाँकती है।
तेरे संग बाते करके मन मेरा हल्का होता है
मिली कोई सहेली मुझे, ऐसा महसूस होता है।
गैरो के आगे दुख में तू उफ! भी ना कर पाती है
सीखी हैं कहाँ से ये कला तूने आँसू भी अपने छिपाती है
आती है फिर माँ के पास माँ से तू लिपट जाती है
आँसू तेरे संग फिर तो तेरी माँ भी बहाती है।
छुपाती है तुझसे आँसू, तू देख नहीं पाती है
अपने दर्द को छुपाकर माँ तुझे मजबूत बनना सिखाती है।
जीवन के सबक का पाठ तुझे अब माँ पढ़ाती है
कहे माँ को कोई अगर कुछ भी ,तू बुरा मान जाती है
तू भी माँ के लिए कितनो से ना जाने अब लड़ जाती है।
माँ हर दुआ में बस तेरा ही सुख चाहती है।
तू भी मेरी बेटी अपनी माँ पर भर भरकर प्यार लुटाती है।
-राशिका