जिसको भी दिल मिला,
ना जाने क्यों दिल देने लगता है,
संभाल कर रखता तो,
धड़कन को सुनता,
संभाल रखता तो,
दर्द के बयां को सुनता,
संभाल कर रखता तो,
खुद के हिस्से कुछ में कुछ शेष रखता,
संभाल कर रखता तो,
कागज पर दिल नहीं छपता,
फिर इसलिए तो कहते हो,
दिल की बीमारी है,
दिल का रोग,
दिल का दर्द,
दिल का दौरा,
दिल की गति और खून का रुक रुक कर,
फिर धड़कन का थम जाना,
सब का इलाज था,
दिल को अपने पास रखते तो।
लेकिन यह भी दिल का कुछ नहीं था,
सब अग्र मस्तिष्क की निशानी है,
तुम्हें लगा दिल की शैतानी है।।
- ललित।