सच्ची मोहब्बत की मगर तन्हाई हाथ लगी।
ज्यादा कुछ चाहा नही जुदाई के साथ चली।।
चाही नौकरी ने सुकून लेकर कुछ सुख दिया।
उस सुकून के लिए तेरे बाजूओ से हाथ मली।।
जरूरत महसूस देर से की बद-गुमानी में रही।
जवानी नौकरी का तालमेल बिगड़ा हाथ मली।।
तरह-तरह के ख्वाब देखे हकीकत कड़वी रही।
उजाले के भंवर में 'उपदेश' अंधेरे में हाथ मली।।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद