रुकते भी किस औहदे से,
तेरे या मेरे रिश्ते से।
होना क्या था जो हुआ नहीं,
तेरे मेरे दरमियां फ़ासले से।
सफ़र ये कट जाता क्या,
हमसफ़र मेरा तेरे बनने से।
राब्ता था क्या जो अब रहा नहीं,
तेरे मुझसे दूर जाने से।
है नहीं तू साथ मेरे तो दुश्मन बन गए कई,
होता ग़र साथ तो दोस्ती हो जाती ज़माने से।
✍️ रीना कुमारी प्रजापत ✍️