जब कुछ भी सूझा नहीं जी भरके रो लिए
अपने दिल के दाग भी अश्कों से धो लिए
दुनिया के सारे गम हमारे ही हिस्से में पड़े
जी थक गया जब तो चादर तान सो लिए
महफिल में यूं रुसवा हुए साकी के सामने
तंज के तीर खाके घर को रुखसत हो लिए
आंसू ज्यादा और कांटे मिल रहे हैं आज तो
हमने सभी के आँगन गुलाब लाके बो लिए
इतने भी तो बिखरे हम नहीं हैं दास रोते रहें
जरा जो हंस के बोला संग उसी के हो लिए...