तुम ने दिया क्या जो था सब ले गई।
झोली में लाश जैसी जिन्दगी दे गई।।
पलक पकड़कर खोलने की कशिश।
उँगली की चुभन आँख आँसू दे गई।।
चेहरा खिलता था जिसको देखकर।
मीठी मुस्कान लाजवाब याद दे गई।।
भाव-विभोर होती 'उपदेश' जिन्दगी।
धरती से क्या गई एक सबब दे गई।।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद