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The Flower of WordThe Flower of Word by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

        

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Dastan-E-Shayra By Reena Kumari PrajapatDastan-E-Shayra By Reena Kumari Prajapat

कविता की खुँटी

                    

तलाक का पश्चाताप*

काश उस दिन में आ गई होती,
आज तन्हा न रो रही होती।

रिश्ते-नाते मरोड़ कर आई।
सपनों के महल छोड़ कर आई,
कागजी घोड़ों पर सवारी कर,
कुल की मर्यादा तोड़ कर आई।

काश गिरकर संभल गई होती,
कुछ तो बदनामी कम हुई होती।

जब वो आए थे लिवाने मुझको,
उनमें बस खामियां दिखी मुझको।
बेवफाओं से वफादारी निभा,
मैंने दुत्कार दिया था उनको।

काश कुछ मैं भी झुक गई होती,
शान से आज रह रही होती।

ताज पहना तलाक का जब से,
खास अपने खफा हुए तब से,
हमसफर मिल गया नया उनको,
मुंह छुपाए मैं फिर रही सबसे।

काश संग उनके रह रही होती,
गोद मेरी भी भर गई होती।

काश उस दिन में आ गई होती,
आज तन्हा न रो रही होती।

_____ ** * **_______

गीतकार-
अनिल भारद्वाज , एडवोकेट,
उच्च न्यायालय,ग्वालियर




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रचना के बारे में पाठकों की समीक्षाएं (1)

+

Komal Raju said

Aapki rachna ki har ek baat satya ha.but Betiyan jab dusre ke ghar jati hai to bahut jaruri ha unko ek friendly environment dena. Unko adjust krne m time lgta ha. Bas meri request ha sbse ki koi pressure na bnaya kre unpe ki ye nahi hua bo nahi hua. Mere khyl se talak kam ho jaynge.

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