बुलबुल आकर छप्पर से दो तिनका ले जाती।
दूर में कहीं पेड की डाली पर घोसला बनाती।।
टूटने सी लगी बिजलियाँ सावन के मौसम में।
सादगी गहना उसका मधुर आवाज में गाती।।
बहार देखेगा कौन अतीत की छाया है गहरी।
फिर भी 'उपदेश' रिझाने के तरीके अपनाती।।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद