उचट गया है मन
लोगों के व्यवहार से
रिश्तों में पनप रहे
व्यापार से।
यहां बदले में सब को
कुछ ना कुछ चाहिए।
अपना भी हिस्सा
लोगों से बचा कर खाईये।
क्या दोस्ती
क्या यारी
क्या रिश्ते
क्या रिश्तेदारी
दिन प्रति दिन
हो रहें सब भरी।
क्या कोई किसी पर
भरोसा करे
सब लगते आस्तीन के
सांप हैं
बस डसने के लिए
हर पल रहते तैयार हैं।
अब ना वो लोग रहें
ना रहें वो दिन प्यार के
बस बचें रह गए लोगों
के बीच में......
केवल और केवल मतभेद हैं...
केवल और केवल मतभेद हैं..