हाथ सारा झनझनाकर गिर पड़ा
वक्त से पंजा लड़ाकर क्या मिला।।
हम हुए बरबाद किसका क्या गया
न्याय का झंडा उठाकर क्या मिला।।
हर घड़ी दीपक करे ख़ुद से सवाल
आग दामन में बसाकर क्या मिला ।।
जिनके लिए खुद ही लगाई आग थी
वो पूंछते है घर जलाकर क्या मिला ।।
दर्द ही केवल रहा तकदीर का लेखा
आदमी का जन्म पाकर क्या मिला।।
जो यहाँ आया वही ले गया तोड़कर
बाग में गुंचे खिलाकर क्या मिला।।
दास जो तहजीब में शामिल शिकार
जी हुजूरी आजमाकर क्या मिला ।।