कुछ लोग दर्द का ठिकाना कर लेते,
ना हो गम फिर भी दिखावा कर लेते हैं।
जमाने का कोना-कोना ढूंढते हैं,
कहीं से उधार उदासी मिल जाए।
भोला चेहरा अपनाते हैं,
सच को सच कह कर झूठ सहारे छुपाते हैं।
मर भी जाएगा जमाना,
फिर भी खामियां और तानों की कमी नहीं है।
पैर छुपाते हैं कदम बढ़ाने के लिए,
और हाथ बांधते आलस लाने के लिए।
फिर क्या मुश्किलों से डर नहीं,
नहीं बस मूर्खता बाकी है।