खूबसूरत नखरे उठाने की जुगत में लगा।
जब से नजर आया रिश्ता बनाने में लगा।।
यों बलखाने को निहारता रहता पल-पल।
चढती जवानी को रास्ता दिखाने में लगा।।
मिला जो सहारा जरा सा बढती बेल को।
स्पर्श कर करके मुझको समझाने में लगा।।
आनन्दित हो जाती 'उपदेश' उसे देखकर।
वह भी कम नही लोगो को जलाने में लगा।।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद