डर आखिरी पड़ाव का
आज खड़े हैं कुछ हमउम्र एक ही मुकाम पर
जहाँ न डर धर्म का है
न किसी कर्म का है
न धन की चिन्ता है
न समाज से कोई गिला है
डर उम्र के उस दौर का है
जहाँ सब एक पंक्ति में खड़े नज़र आ रहे हैं..
जहाँ कोई अपनी सांसों से लड़ने की कोशिश कर रहा है
तो कोई उसकी आँखों में दिख रहे डर से डर रहा है
कोई अपने हमसफ़र के लिए डर रहा है
तो कोई यह सोच कर डर रहा है कि हममें से कौन अकेला रह जाएगा
कोई डर रहा है कि किस हालात में यह तन छूटेगा
तो कोई अपनों से जुदा होने के डर से डर रहा है..
हमारी लिखने की सोच हकीकत से बहुत दूर है
उस एहसास को जीना अभी दूर है
यकीनन आसान नहीं होगा वो मुकाम
जहाँ ज़िन्दगी के बीते हुए पलों की झलक हमारी यादों से मिलने आया करेगी
हमारी सांसों के बीच का फासला कब पूरा न हो पाए यह डर हर पल मन में समाया होगा
संभवतः आज कुछ हमउम्र जहाँ खड़े हैं ,कुछ साल बाद हम भी उसी पंक्ति में खड़े होंगे ..
वन्दना सूद
सर्वाधिकार अधीन है

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




