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The Flower of WordThe Flower of Word by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

        

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Dastan-E-Shayra By Reena Kumari PrajapatDastan-E-Shayra By Reena Kumari Prajapat

कविता की खुँटी

                    

डर आख़िरी पड़ाव का

डर आखिरी पड़ाव का
आज खड़े हैं कुछ हमउम्र एक ही मुकाम पर
जहाँ न डर धर्म का है
न किसी कर्म का है
न धन की चिन्ता है
न समाज से कोई गिला है
डर उम्र के उस दौर का है
जहाँ सब एक पंक्ति में खड़े नज़र आ रहे हैं..

जहाँ कोई अपनी सांसों से लड़ने की कोशिश कर रहा है
तो कोई उसकी आँखों में दिख रहे डर से डर रहा है
कोई अपने हमसफ़र के लिए डर रहा है
तो कोई यह सोच कर डर रहा है कि हममें से कौन अकेला रह जाएगा
कोई डर रहा है कि किस हालात में यह तन छूटेगा
तो कोई अपनों से जुदा होने के डर से डर रहा है..

हमारी लिखने की सोच हकीकत से बहुत दूर है
उस एहसास को जीना अभी दूर है
यकीनन आसान नहीं होगा वो मुकाम
जहाँ ज़िन्दगी के बीते हुए पलों की झलक हमारी यादों से मिलने आया करेगी
हमारी सांसों के बीच का फासला कब पूरा न हो पाए यह डर हर पल मन में समाया होगा
संभवतः आज कुछ हमउम्र जहाँ खड़े हैं ,कुछ साल बाद हम भी उसी पंक्ति में खड़े होंगे ..
वन्दना सूद




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रचना के बारे में पाठकों की समीक्षाएं (4)

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कमलकांत घिरी said

क्या बात लिखी है मैम जी आपने, जीवन का यथार्थ है ये संभवतः आज कुछ हमउम्र जहाँ खड़े हैं ,कुछ साल बाद हम भी उसी पंक्ति में खड़े होंगे .. बहुत गहरी सोच के साथ भविष्य की चिंता व सजगता को बेहतरीन ढंग से व्यक्त किए है, शानदार 👌👏🙏

वन्दना सूद replied

🙏🙏

Lekhram Yadav said

बहुत सुन्दर रचना, आपको सादर नमस्कार

वन्दना सूद replied

🙏🙏शुक्रिया sir

श्रेयसी said

बिल्कुल सही लिखा ये डर तो सबके अंदर रहता है। बहुत सुंदर रचना 👌👌🙏🙏

वन्दना सूद replied

उम्र के आखिरी पड़ाव पर शायद ज्यादा हो जाता है

Updesh Kumar Shakyawar said

अति सुन्दर रचना के लिए सादर नमस्कार

वन्दना सूद replied

🙏🙏

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