"ग़ज़ल"
सपने जवाॅं हुए थे जो ऑंखों में पल कर!
सच्चाई देखी बह गए ऑंसुओं में ढल कर!!
ख़्वाबों में अपने इतनी पैदा करो शिद्दत!
वो सच का रूप ले लें ख़्वाबों से निकल कर!!
बैठो न कभी तुम मुक़द्दर के भरोसे!
आगे बढ़ो और रख दो तक़दीर बदल कर!!
हर ग़म का सामना करो हिम्मत के साथ तुम!
ख़ुशी आएगी इक दिन अपने पैरों पे चल कर!!
ये ज़िंदगी के रास्ते आसाॅं नहीं होते!
चलना है इन पे तुम को 'परवेज़' सॅंभल कर!!
- आलम-ए-ग़ज़ल परवेज़ अहमद
© Parvez Ahmad