सवालों की झड़ी ना लगाओ
कि मैं अपने आप में ही उलझा हूं।
चाहो तो मुझे थोड़ा सा सुलझाओ
कि थोड़ा तो मैं पहले से सुलझा हूं।
भला मानस हूं मैं, समझो
भले घर से आता हूं।
चाहो तो थोड़ी देर बतियालो
जो कहो तो फिर मैं जाता हूं।
आवारा बंजारा बेसहारा नहीं मैं
मेरा अपना ठौर-ठिकाना कायम है।
चाहो तो आकर देख सकती हो
मेरे घर दर-ओ-दीवारों का जो आलम है।
मेरे पास समय नहीं है बाकि
जो बर्बाद करना था कर चुका हूं मैं।
चाहो तो मुझे आज़मा सकती हो तुम
इन झंझटों से ख़ुद को आबाद कर चुका हूं मैं।
----मनीषा
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