वो रब की रहमत है।
वो घर की बरकत है।
वो मई का शरबत है।
वो ख़ुद से सहमत है।
वो बड़ा कामकाजी है।
वो बंदा साझी है।
वो कमी में राज़ी है।
वो बोलने में हां जी है।
वो मां का लाडला है।
वो पिता का सांवरा है।
वो भाई का बावरा है।
वो बहन का छावरा है।
वो समेटे बवंडर है।
वो अपने अंदर है।
वो दिखने में सुंदर है।
वो थोड़ा सा बंदर है।
वो गज़ले गाता है।
वो शायरी सुनाता है।
वो लिखता जाता है।
वो लड़का कहलाता है।
वो कभी सहमा रहता है।
वो तब भी हंसता देखा है।
वो जब अकेले भी रहता है।
वो तब भी संगत कहता है।
वो घर का बड़ा बेटा है ना।
जिम्मेदारी उसके सर है ना।
कि उसे ही चलाना घर है ना।
फिर लौट कर शाम को वापस
आना उसे अपने ही दर है ना।
----मनीषा
पार्ट - २ पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें.