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The Flower of WordThe Flower of Word by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

        

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Dastan-E-Shayra By Reena Kumari PrajapatDastan-E-Shayra By Reena Kumari Prajapat

कविता की खुँटी

                    

सैलाब

कभी उनकी हर बात के, ज़वाब थे पास मेरे..
उनकी नींदें थी मेरी, और ख़्वाब थे पास मेरे..।

उनकी हथेलियों में चमकते थे, जुगनू रात भर..
वो थे हमसफर तो हज़ार, मेहताब थे पास मेरे..।

उनके केसुओं में कैद थी, ख़ुशबू उम्र भर के लिए..
चमन से भी कुछ जियादा, गुलाब थे पास मेरे..।

उनकी वफ़ा का ही जिक्र किया, महफिल में हमने..
वरना बेवफ़ाई के हिसाब, बे–हिसाब थे पास मेरे..।

मेरी ख़ुश्क आंखों से मेरे हाल का तब्सिरा ना कीजे..
हंसी थी लबों पर मगर, समंदर से सैलाब थे पास मेरे..।


पवन कुमार "क्षितिज"




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रचना के बारे में पाठकों की समीक्षाएं (4)

+

Updesh Kumar Shakyawar said

बहुत सुंदर 🙏🙏

रीना कुमारी प्रजापत said

Ahha क्या बात है बहुत खूब 👌🙏🙏 प्रणाम

Shiv Charan Dass said

बहुत खूब. ..समंदर से सैलाब थे. .क्या बात hai

वन्दना सूद said

हंसी थी लबों पर मगर, समंदर से सैलाब थे पास मेरे..।wah wah बहुत बढ़िया

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