कभी उनकी हर बात के, ज़वाब थे पास मेरे..
उनकी नींदें थी मेरी, और ख़्वाब थे पास मेरे..।
उनकी हथेलियों में चमकते थे, जुगनू रात भर..
वो थे हमसफर तो हज़ार, मेहताब थे पास मेरे..।
उनके केसुओं में कैद थी, ख़ुशबू उम्र भर के लिए..
चमन से भी कुछ जियादा, गुलाब थे पास मेरे..।
उनकी वफ़ा का ही जिक्र किया, महफिल में हमने..
वरना बेवफ़ाई के हिसाब, बे–हिसाब थे पास मेरे..।
मेरी ख़ुश्क आंखों से मेरे हाल का तब्सिरा ना कीजे..
हंसी थी लबों पर मगर, समंदर से सैलाब थे पास मेरे..।
पवन कुमार "क्षितिज"