भटक रहा है क्यों इंसान
नहीं रहा तेरा ईमान
भूल गया अब मानवता को
कर रहा है अपना अपमान
पेड़ और पौधे काट काट कर
बना रहा अपना मकान
भटक रहा है क्यों इंसान
मौत की सीढ़ी पर चढ़ चढ़ कर
अपने को ऊंचा दिखलाए
नगर नगर की खोज कर करके
उसे पर अब अधिकार जमाए
बस अपनी पहचान बनाएं
धन संपदा बहुत कमा ली
नहीं कमाया साथ किसी का
भटक रहा है क्यों इंसान
मैं तो यह सब देख रहा हूं
अपने को मैं मोड रहा हूं
कभी किसी का दिल ना दुखाउं
सच्चाई की राह दिखाउं