(हास्य-व्यंग्य)
चोरों की बारात: एक अजीबोगरीब मंज़र
डॉ.एच सी विपिन कुमार जैन "विख्यात"
चोरों की बारात निकली, अजब था ये मंज़र,
दूल्हा बना था महाचोर, संग बाराती थे सारे कंज़र।
घोड़ी पर बैठा था राजा, पहने था नकली ताज,
और बाजा बजा रहे थे, लूटपाट के सब साज।
एक ने चुराई थी तिजोरी, दूजा था जेबकतरा,
तीजा था टैक्स चोर, चौथा था रिश्वतखोरा।
कपड़े सब ब्रांडेड पहने, चेहरे पर नकली मुस्कान,
अंदर से थे काले धंधे वाले, न कोई शर्म, न कोई मान।
चलते-चलते सड़क पर, लूटते थे हर दुकान,
जनता बेचारी देखती, ये कैसा था मेहमान।
पुलिस भी थी हँस रही, ये कैसी बारात आई,
चोरों ने आज अपनी, नई पहचान बनाई।
मिठाई में थी रिश्वत, और शर्बत में था छल,
हर कदम पर दिखाते, अपना नया बल।
ये हास्य-व्यंग्य था ऐसा, जो सबको भा गया,
चोरों की बारात ने, सबको खूब हँसाया।
पर ये हँसी एक सबक थी, जो सबको सिखाती है,
कि बुराई की राह, आखिर में कहाँ ले जाती है।

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



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