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The Flower of WordThe Flower of Word by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

        

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Dastan-E-Shayra By Reena Kumari PrajapatDastan-E-Shayra By Reena Kumari Prajapat

कविता की खुँटी

                    

आग के बीच हथेली है

आग के बीच हथेली है समझ लेना है
जिन्दगी ऐसी पहेली है समझ लेना है

हाथ में हंटर हैं न्याय के हजारों उनके
पीठ अपनी अकेली है समझ लेना है

छिप गईं है गुनाहों में खुशी की दुल्हन
दर्द ही अपनी सहेली है समझ लेना है

पी रहा वो हमारा ही लहू हमेशा देखो
जुर्म के हाथ में थैली है समझ लेना है

वक्त है मूक बधिर यह गलतफहमी है
इसकी नजरें विषेली हैं समझ लेना हैं

जिस्म तो मिल जायेंगे दुनियां में बहुत
मन गज़ल एक नवेली है समझ लेना है

दास जब इंतजार किया नई सुबह का
रात उतनी यहाँ फैली है समझ लेना है

रूठ जाती है मेरी रूह ये मुझसे अक्सर
दिल अब उजड़ी हवेली है समझ लेना है




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रचना के बारे में पाठकों की समीक्षाएं (3)

+

मनोज कुमार सोनवानी "समदिल" said

अगर जिंदगी जीना है तो वक्त से जूझना ही पड़ेगा। आपने खूबसूरत हकीकत को अपने कविता में प्रस्तुत किया है। वक्त मूक-बधिर नहीं है बल्कि इनकी नजरें विषैली।एक कड़वी सच्चाई।
शिवचरन जी नमस्कार।

शिवचरण दास replied

मनोज जी आपका हार्दिक धन्यवाद नमस्कार

सुभाष कुमार यादव said

बहुत सुंदर रचना दास सर।👌👌🙏

शिवचरण दास replied

शुक्रिया सुभाष जी

वन्दना सूद said

ज़िन्दगी की सच्चाई जैसी भी हो उससे लड़ना ही पड़ता है

शिवचरण दास replied

आपका हार्दिक धन्यवाद

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