कभी सूरज की अरुणाई सी,
कभी सन्ध्या की लाली सी,
कभी शब्दों के फाके सी,
कभी पकवानों की थाली सी।
ज़िंदगी इक कविता सी,,,,,,,,
कभी सुबह की ताज़गी सी,
कभी शाम की थकान सी,
कभी गमों की आंधी सी,
कभी अधरों की मुस्कान सी।
ज़िंदगी इक कविता सी,,,,,,,,
कभी दोस्तों सँग हंसती सी,
कभी बैठ अकेले रोती सी,
कभी बेफिक्र ही दौड़ती सी,
कभी अपना ही बोझ ढोती सी।
ज़िंदगी इक कविता सी,,,,,,,,
कभी प्यार में भीगी रुबाई सी,
कभी अकेले में तन्हाई सी,
कभी महफ़िलों में छाई सी,
कभी खुद से ही रुसवाई सी।
ज़िंदगी इक कविता सी,,,,,,,,
कभी दर्द की भीगी बारिश सी,
कभी रहम की गुज़ारिश सी,
कभी अपनों का दर्द सहती सी,
कभी निर्बाध दरिया बहती सी।
ज़िंदगी इक कविता सी,,,,,,,,,
कभी सुंदर महकी चहकी सी,
कभी होती बहकी बहकी सी,
कभी हंसती दुख सहती सी,
कभी रुकती नहीं चलती सी।
ज़िंदगी इक कविता सी।
ज़िंदगी इक कविता सी।।
- संजय भाटिया
डी एल एफ़ 3, गुरुग्राम [हरियाणा]

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



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