भावनाएँ जल में चल रही उस नाव की तरह होती हैं,
जिसे वायु अपने वेग से किसी भी दिशा में बहा कर ले जाती हैं
नाविक बेसुध हो वायु की दिशा में ही चल पड़ता है
अनचाही राहों पर वह कितनें ही असहनीय दर्द झेलती चली जाती हैं
फिर भी उन तूफ़ानों से लड़ना नहीं सीखती
यह वायु कोई और नहीं हमारी ममता,मोह,काम,क्रोध,
अहम् ही है
जो हमें हारना सिखाती है लड़ कर जीतना नहीं सिखाती
और हम भी इनमें बँध कर हारना ही स्वीकारते हैं उन्हें त्यागना नहीं स्वीकारते ..
वन्दना सूद