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The Flower of WordThe Flower of Word by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

        

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Dastan-E-Shayra By Reena Kumari PrajapatDastan-E-Shayra By Reena Kumari Prajapat

कविता की खुँटी

                    

हम बुरों को बुरा ही कहना-ताज मोहम्मद

कुर्आन की हर आयत से जिंदगी को समझना।
यूँ दिखावे की खातिर मस्जिदों में नमाजें ना पढ़ना।।1।।

क्यों लगे रहते हो हर वक्त यूं फिक्रे खुदा में।
वो जिक्रे खुदा है हर पल तुम फिक्रे खुदा ना करना।।2।।

जो पल बीता उसको याद करके क्या बीतना।
यूँ भागे हुए वक्त का तुम कभी भी पीछा ना करना।।3।।

कभी तेरे शहर आना हुआ तो मिलूंगा तुझसे।
यूँ फोन पर अब क्या तआर्रूफ दे दूँ मैं तुमको अपना।।4।।

हम बुरों के बिना तुम अच्छों को कौन जानेगा।
अपनी पहचान की खातिर हम बुरों को बुरा ही कहना।।5।।

अब तो अपने भी भीड़ में शामिल हो गए हैं।
तुम रिश्तों की दुहाई देकर अब हमसे कुछ ना कहना।।6।।

ताज मोहम्मद
लखनऊ




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रचना के बारे में पाठकों की समीक्षाएं (3)

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Lekhram Yadav said

क्या शायरी है ताज भाई, मजा आ गया पढ़कर।

ताज मोहम्मद replied

बहुत बहुत शुक्रिया।

अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र' said

Bahut umda Taaj Saahab

ताज मोहम्मद replied

शुक्रिया

Bhushan Saahu said

Are waah...bahut badiya.

ताज मोहम्मद replied

शुक्रिया भाई जी।

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