कापीराइट गीत
मैं चलता रहा
दिन-रात यूं ही
आशा का सहारा लेकर
अंजान डगर पे
मैं चलता रहा
बस नाम तुम्हारा लेकर
थी राह भरी
कांटों से मगर
हम चलते रहे उस पर
क्या बात हुई
कब रात हुई
हमको थी न कोई खबर
हम बढ़ते रहे
राहों में यूं ही
यादों का सहारा लेकर
अंजान डगर ...........
हो आस तुम्हीं
विश्वास तुम्हीं
मेरे जीवन की डगर में
अब क्या खोया
और क्या पाया
अब ऐसे हंसी सफर में
हम चलते रहे
और बढ़ते रहे
विश्वास तुम्हारा लेकर
अंजान डगर............
मैं ख्वाब चुनूं
नई राह चुनूं
बस चलता रहूं राहों में
जब रैन मिले
मुझे चैन मिले
बस आके तेरी बाहों में
यादव ने कहा
तुम चलते रहो
बाहों का सहारा लेकर
अंजान डगर ............
- लेखराम यादव
.. मौलिक रचना ..
सर्वाधिकार अधीन है