करुण रस कविता
बीच मझधार में छोड़कर क्यूँ जाते हो।
नाव चलाना जानती हूँ मैं,
तुम इतना घमंड किस पर करते हो।।
दिल में आग लगाके क्यूँ जाते हो।
दूसरों के घर उजाड़ अपना घर क्यूँ बनाते हो।।
कदम थिरक गई मेरी लोगों की बात सुनकर।
मैं थक गई उन्हें आपके बारे बताते-बताते ।।
सुप्रिया साहू