कुछ शेष न हो तो त्याग करो
साम दिए समझौता करले,
दाम दिए बिक जाता हो।
दण्ड दिए विचलित हो जाए,
भेद दिए फुट जाता हो।
ऐसों से प्रतिफल दूर रहो,
ऐसों से मत अनुराग करो।
कुछ शेष न हो तो त्याग करो।।
हृदय में संचित गरल कोष
वाणी में शहद मिलाया हो।
सम्मुख में प्रसंशा भूरि भूरि,
हटते ही निंदा गाया हो।।
ऐसों पर मत विश्वास करो।
कुछ शेष न हो तो त्याग करो।
जो जान बुझकर झूठ कहे
सच कहे झूठ को बार-बार,
ऐसे लोगों से दूर रहो,
होते इनके गंदे विचार।
इन्हें पंख जम गया मरने का
मत इनसे प्रेम न लाग करो।
कुछ शेष न हो तो त्याग करो।।
जिसमें परहित की बात नहीं,
अपना ही हित हर पल सोचें।
ये मनुज रूप में हिंसक पशु,
अवसर पाकर ये बस नोचे।।
इनको न द्वार पर आने दो,
दिन रात सुरक्षा जाग करो।
कुछ शेष न हो तो त्याग करो।।
झूठा दोषारोपण कर जो
सज्जन को बदनाम करे
इनसे भी गए गुज़रे वह जो,
इस नीच का भी सम्मान करे।।
दोनों हैं कीट पतंग घोर,
सम्मुख प्रज्ज्वलित चिराग करो।
कुछ शेष न हो तो त्याग करो।।
उपहार मिला यदि नहीं जिसे,
ससुराल में ताना कसती हो,
विचरण स्वछंद सदा करती,
पर पुरुष संग जो रहती हो।
इस नारि से भली दनुज नारि,
इस नारि से भला विराग करो।
कुछ शेष न हो तो त्याग करो।।
प्रस्तुतकर्ता कवि:-
पाण्डेय शिवशंकर शास्त्री "निकम्मा"
मंगतपुर,पकरहट,सोनभद्र, उत्तर प्रदेश।

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



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