हिंदू हूँ, गर्व से कहता, यह तन, मन, जीवन तेरा,
ऋषियों की वह पुण्यधरा हूँ, धर्म-जागरण ध्वज मेरा।
हिंदू संघ, न केवल नारा — यह सनातन की शपथ है,
एकत्व, तप, और त्यागमयी यह संस्कृति की रथ है।
जब-जब भारत थका थका सा, छाया छद्म अंधकार,
संघ बना तब अग्निशिखा, कर उठा नवजय का पुकार।
वेदों की वह ज्योति लिये, संघ बढ़े हर गाँव में,
करुणा, सेवा, शौर्य लिये, दीप जले हर पावन धाम में।
नवयुवकों में तेज जगाना, मातृभूमि को जान अर्पण,
वर्ण, वर्ग, भाषा से ऊपर, एक धर्म में हो समर्पण।
संघ कहे — न कोई पराया, सब में शिव का भाव दिखे,
हाथों में हो ग्रंथ पुरातन, और वक्ष पे साहस लिखे।
मंदिर, तुलसी, गो और गीता — ये पहचान हमारी है,
संघ खड़ा है पर्वत बनकर, जब लहराए माया भारी है।
संघ नहीं है द्वेष का पताका, यह तो प्रेम का शंखनाद,
धर्म की रक्षा में हो बलिदान, यही है संघ का उन्माद।
हे युवा! अब जागो, चलो साथ संघ के पथ पर,
बनो दीपक अज्ञान-रात्रि में, बनो मंत्र नव युग-अंतर।
नंद किशोर