भ्रष्टाचारियों की रेल
डॉ एच सी विपिन कुमार जैन विख्यात
अंधों को भी दिखाई देने लगा,
शब्द क ख ग होते हैं।
मगर जिनकी आंखों पर चढ़े हैं, चश्में।
अब उन्हें एक का चार दिखाई देने लगा ।
पढ़े-लिखों की है, लाचारी।
रुपया देख जमा,बन गए भ्रष्टाचारी ।
लाखों डकार गए,
आई है।
अब हिसाब की बारी ।।
बैठकर तीनों करते हैं, कार की सवारी ।
ऑडिट के नाम पर,
सब झोल है ।
बैंक के खाते में, सब गोल है।
घोटाले बाज, घोटाले कर करके ।
धंसते जा रहे हैं, भ्रष्टाचार के दलदल में।
अब एक ही रास्ता,
दिखता है इनके चश्मे में।
जो सीधा पहुंचता है,
जेल की रेल में।