अपने चश्में को सिर पर चढ़ाकर भूल गई।
फिर पूछती मुझसे मेरी ऐनक किधर गई।।
ऐसा बेहतरीन नज़ारा कई बार देखा मैंने।
अब तो मै भी करता जब से जान घर गई।।
उसकी कुछ आदतों का दीवाना 'उपदेश'।
मगर जल्दी ही वो मेरी आदतों से भर गई।।
अब बदलना चाहती अपनी नही मेरी आदतें।
किसी के समझाने से उसकी बुद्धि फिर गई।।
- उपदेश कुमार शाक्यवार 'उपदेश'
गाजियाबाद