तुम्हें पता और हमें पता
मौन को कुछ नही पता
अलग-थलग जिस्म हुए
यादों को सब कुछ पता
तुमने जो कुछ कहा कभी
जाने कैसे सब सुनती रही
जीवन में सुन्दर मौन रहा
बस प्रेम के वशीभूत रही
जहाँ शब्द नही सम्वेदनाये
जीवन को झगझोरती रही
मजबूरियाँ कैसी भी 'उपदेश'
सब पहचानती बखूबी रही
वक्त ने हिलोर ली इस तरह
जानती सब मगर मौन रही
रिश्ता अछूता नजरों से छुटा
दिल से तुम्हारे मैं करीब रही
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद