मै क्यूँ भगवे वस्त्र पहनकर डेरा डाल के बैठु?
मै क्यूँ आश्रम लगाके संसार चलाऊं?
मै क्यूँ शब्दों के जाल बिछाऊं?
मै क्यूँ दाढ़ी-बाल बढ़ाके सद्गुरु होने का ढोंग करूँ?
मै क्यूँ भगवान के नाम पे हिमालय की शांति भंग करूँ?
मै क्यूँ मन्दिर में पत्थर के सामने तेल जलाऊं?
मै क्यूँ तीर्थ के नाम पर संसार की सैर करूँ?
मै क्यूँ सत्संग के नाम पे अपना पेट भरूँ?
मै क्यूँ सत्यनारायण की पूजा करके धन कमाऊँ?
मै क्यूँ कथा - कीर्तन करके सुख -सुविधा में जीऊँ?
मै क्यूँ तिलक - माला धारण करके लोगो को उल्लू बनाऊं?
मै क्यूँ साधु - महात्मा बनकर लोगो के जेब काटूँ?
मै क्यूँ श्राद्ध करके अपनी घर - गृहस्ती चलाऊँ?
मै क्यूँ योग के नाम पे अपना धंदा चलाऊँ?
हे भगवंत...
मै क्यूँ भूत बनकर परमात्मा होने का दावा करूँ?
✍️ प्रभाकर, मुंबई ✍️