धुंध से छाए घने कोहरे के बीच,
सुबह-सुबह चलते साथ में कदम,
सर्द हवाओं से ठिठुरते तन बदन में,
राहत देती तुम्हारे हाथों की तपन,
महसूस आज भी होती हो तुम,
तड़पन की तरह,
आज भी धड़कते हो तुम,
सीने में धड़कन की तरह ।
वो साँसों की गरमाहट,
नरम होंठों की छुअन,
बुझ गई वर्षों की प्यास,
हो जाता मैं तुझमें मगन,
महसूस आज भी होती हो तुम,
तड़पन की तरह,
आज भी धड़कते हो तुम,
सीने में धड़कन की तरह ।
वो बातों का दौर,
और उन बातों में उलझन,
उन उलझनों में एक स्वप्न,
उस स्वप्न में तुम्हें पाने की लगन,
महसूस आज भी होती हो तुम,
तड़पन की तरह,
आज भी धड़कते हो तुम,
सीने में धड़कन की तरह ।
🖊️सुभाष कुमार यादव