भूख जो मानव को भी दानव बना दे ।
रक्षक को भी भक्षक बना दे।
आदमी को आदमी से जानवर बना दे।
भूख चाहे अन्न की हो या पैसे की या अन्य किसी चीज़ की भूख क्या से क्या ना करा दे।
दो सौ दिन में एक दाना थाली में आता है।
अजीब विडंबना है अपने देश की यहां
लाखों टन अनाज बरबाद हो जातें हैं और
वहीं दूसरी ओर लाखो लोग रोज़ भूखे सो जातें हैं।
भोजन संरक्षण संवर्दन की पारंपरिक तरीके से अभी भी काम चालू है।
कहीं सौ रुपए किलो बिक रहा तो कहीं
पड़े पड़े सड़ रहा आलू है।
बरसतों में तो सरकारी गोदामों का तो हाल
खस्ता हो जाता है।
पड़े पड़े अनाज भींग कर बारिश में लाखों टन सड़ जाता है।
आज़ादी के पचहत्तर वर्षों बाद भी वही हाल है।
सरकारी महकमों की अभी भी वही चाल है।
भारत का भविष्य बेहाल है।
सिर्फ़ अनाज बांटने से क्या होगा।
आम जन मानस को मुख्य धारा से जोड़ना होगा।
किसानों को सिर्फ खेती हीं नहीं
बल्कि उपज की भंडारण की भी विधि
बतानी होगी।
फिर से देश को सोने की चिड़ियां बनानी होगी ,
और करोड़ों भारतीयों की जठराग्नि शांत करनी होगी।
है भूख बुरा आदमी बुरा नहीं होता ,
है यह भूख जो आदमी को बुरा बनाता है।
शांत पेट शांत चीत तभी आदमी जीत सकता है, वरना ..
जठराग्नि की तीव्रता में तो मानव जलता रहता है।
लूट खसोट मार पीट चोट एक दूसरे को देता रहता है।
भूखा पेट क्या क्या नहीं करता है।
दोस्तों भय भूख गरीबी भ्रष्टाचार से देश को बचाना ज़रूरी है..
है यह काम उत्तरदायित्व का इसे हम सभी भारतीय को निभाना है।
शादी पार्टियों में बर्बाद हो रहे हरेक निवाले को बचाना है।
कोई भूखा ना सोए कभी हमें भोजन हर जनमानस तक पहुंचना है।
अंततः भोजन की बरबादी नहीं होने देना है।
भोजन की बरबादी को रोकना है..
इसके बारे में हम सभी को सोचना है..
भोजन की बरबादी को रोकना है....
भोजन की बरबादी को रोकना है....