कैसी - कैसी ठोकरें तूने खिलाई ऐ ज़िंदगी,
कभी संभाल भी लेती।
कैसे - कैसे दुःख तूने दिए ऐ ज़िंदगी ,
कभी सुख भी दे देती ।
ज़िंदगी की कहानी बड़ी है पुरानी,
कहते हैं किसी को भा गई ये ज़िंदगी और
कहते हैं किसी को रास ना आई ये ज़िंदगी ।
कैसे - कैसे ज़ख्म तूने दिए ऐ ज़िंदगी,
कभी ज़ख्मों पर मरहम भी लगा देती ।
कैसे - कैसे दुश्मन तूने दिए ऐ ज़िंदगी ,
कभी अच्छे दोस्त भी दे देती।
दुश्मनों की कतार लगा दी तूने ऐ ज़िंदगी
और अपनों की ही कमी कर दी,
कभी एक कतार अपनों की भी लगा देती ।
हर वक्त नाराज़ ना रहा कर ऐ ज़िंदगी हमसे,
कभी खुश भी हो जाया कर।
तेरे दोस्त ही है हम दुश्मन नहीं,
कभी मुस्कुरा भी जाया कर।
----रीना कुमारी प्रजापत