(कविता) (क्याें कि वह बेगम है.....)
काैन जाने नारी काे कितना गम है
क्याें कि वह एक साेहर की बेगम है
कर कर शादी एक पत्नी बन कर
वह पति के घर जा कर
वहाँ पर उसे सभी से है डरना
घर का सारा काम उसे ही है करना
साधारण नहीं उस में कितना दम है
क्याें कि वह एक साेर की बेगम है
है घर में सास ससूर जेठ जेठानी
दाे बच्च्चे अाैर है ननद महारानी
सुबह शाम खाना सब काे खिलाती
पानी भी दिन भर घडी घडी पीलाती
कर कर भी इतना इज्जत उसकी कम है
क्याें कि वह एक साेहर की बेगम है
घर से थाेडी दूर जा कर पानी भरती
कभी कुछ करती ताे कभी कुछ करती
घर पर कपडे भी सभी के धाेती
थक कर कभी छुपके से वह राेती
उसका दिल टुट चूका न पट्टी मरहम है
क्याें कि वह एक साेहर की बेगम है
सास ननद पति सभी के पाव दबाती
फिर भी बेचारी वही डांट खाती
दुखाें भरी कहानी न खुशी का गीत है
अाज वह बहुत पीडित है
ये ताे बडा जुलम अाैर सितम है
क्याें कि वह एक साेहर की बेगम है
सभी ने उसकाे जिम्वेबारी दिया है
घर का सारा ठेक्का उसीने लिया है
दुख अाैर ब्यथा बताए भी किसे
उसका पति ही देखता नहीं उसे
बेकार अपना उसी का ही प्रितम है
क्याें कि वह एक साेहर की बेगम है
पुरुष अपनि अादत बदले ताे
साथ-साथ नारी काे ले कर चले ताे
तभी जा कर अागे वह बढ पाएगी
घर समाज देश में समृद्धि भी लाएगी
हाे बडी महान तुम्हें मेरी नमन है
क्याें कि वह एक साेहर की बेगम है
क्याें कि वह एक साेहर की बेगम है.......