शहर का मंजर अब हमको अच्छा लगता नहीं है।
कोई भी बशर यहां अब हमको सच्चा दिखता नहीं हैं।।
लबों पर झूठी मुस्काने लिए सब जिंदगियां जी रहे है।
यहां सच्ची मुस्कान लिए कोई बच्चा दिखता नहीं है।।
कहां गई वो गलियां जहां हम बेखबर खेला करते थे।
सुकूँ से सोए कहां कहीं मकान कच्चा दिखता नहीं है।।
शिर्क ने मजबूती से पैर जमाया है हर दिल पर यहां।
किसी भी खुदापे अब अकीदा पक्का दिखता नहीं है।।
सरे राह ही यहां घर की इज्ज़त नीलाम हो रही है।
फिर भी घर के लोगों को अब धक्का लगता नहीं हैं।।
ताज मोहम्मद
लखनऊ