रो पड़ी रूह मेरी ये सब जान कर.. ।
की लड़ रहा है इनसा धर्म के नाम पर..।
चलो माना तुमने अपने धर्म बचाया.
ना जाने कितनो को मार गिराया
अब बताओ क्या है पास में तुम्हारे ।
सन गए है खून में हाथ जो तुम्हारे ।
खून तो चलो पानी से धूल जाएगा ।
माथे पर लगे दाग उन्हें अब कोन मिटाएगा ।
क्या जिसने तुम्हे धर्म के ख़िलाफ़ भड़काया था ।
याद है कि वो तुम्हारे साथ भी आया था ।
अरे वो तो अपने मज़बूत घर में छिप जाएगा ।
तुमहरे घर कमजोर है परसासन तुम्हें खिच के ले आएगा ।
रगड़ देंगय ज़िंदगी वो जेल की दीवार पर ।
घर वाले भी थक जाएँगाय कोट की सीड़ियों पर ।
फिर बेठ कर अकेले में खुद से ये विचार करना ।
में हूँ यहाँ तो कोन देगा घर में मेरे रोटियाँ ।
क्या भूल गए तुम हिटलर के दिए हुए संदेश को ।
जिसने नाज़ी नस्ल को सर्वशेस्ट वतया था ।
नाज़ीयो के हाथों यहूदियों का नरसंहार कराया था ।
ना जाने एसी कितनी हिंसा इतिहास में दफ़्न है।
अरे धर्म की लड़ाई भी भला कोन जीत पाया है ।
इंसानियत ने॰ हमेशा धर्म को बचाया है ।
अमीर का अमीर से रिसता होता है ।
ग़रीब का ग़रीब से रिसता होता है ।
अरे धर्म जात देख कर भी क्या रिसते बनते है ।
रिस्ते तो हमारी भावनाओं से पनपते है ।
भावनाओं का भावनाओं से मेल हो जाता है ।
तब एक रिसता नया जन्म पाता है ।
निखिल कुमार ।