जलती आग
डॉ. एच सी विपिन कुमार जैन "विख्यात"
जलती हुई आग से सोने की पहचान होती है,
तपती भट्टी में ही उसकी असली शान होती है।
कच्चापन जल जाता है, मैल सारा उड़ जाता है,
कुंदन बनकर निकलता है, जो ताप को सह जाता है।
जीवन भी एक अग्नि परीक्षा, हर पल यहाँ होती है,
मुश्किलों की आंच में ही, सच्ची पहचान होती है।
जो हार मान ले डर से, वो राख बन जाता है,
जो सह ले हर चुनौती, वो सोना कहलाता है।
दुखों की ये ज्वाला, कमज़ोर को जलाती है,
पर साहसी के भीतर, एक नई चमक लाती है।
संघर्ष की भट्टी में तपकर, जो निखरता है इंसान,
वही तो बनता है जीवन में, सच्चा और महान।
यह आग तुम्हें तोड़ भी सकती, या नया आकार दे,
चुनाव तुम्हारा है बंधु, किस राह पर पग धरे।
सोना बनना है तो तपना होगा, ये अटल सत्य जानो,
आग से डरोगे तो फिर, मिट्टी ही पहचानो।
यह दुनिया भी एक भट्टी है, हर पल कुछ जलता है,
पर जो स्थिर रहता है भीतर, वही तो फलता है।
तो मत घबराओ मुश्किलों से, ये तो हैं इम्तिहान,
जलती हुई आग से ही, होती सोने की पहचान।
तपो और निखरो तुम भी, बनो अनमोल सोना,
जीवन की हर कसौटी पर, खरा उतरेगा कोना-कोना।
आग से डरना नहीं, उसे अपना हथियार बनाओ,
अपनी पहचान को जग में, स्वर्णिम अक्षरों से लिखाओ।