जो कभी था वो तो, पहले सा इंसाँ न रहा..
वक़्त भी तो अब उस तरह, मेहरबाँ न रहा..।
मंजिलों के निशाँ, बदलते ही रहे हरदम..
समझिए कि अब, सफ़र आसाँ न रहा..।
जहाँ दरकार थी, वहीं कुछ कह ना सका..
जबकि इतना भी कभी, मैं बेज़ुबाँ न रहा..।
आसमां से भी आगे, निकल गए तलाश में तेरी..
लगता है अब, सितारों से आगे और जहाँ न रहा..।
हम इस शहर में, उसकी तलाश करें भी तो कैसे..
अब तो उसकी बेवफ़ाई का भी, कोई नामोनिशां न रहा..।