मत मेरी गति को रोको अब,
मत राहों में अवरोध धरो।
शृंखला जर्जर, जर्जर कर दो,
जो बाँधे, उसका संहार करो।।
तूफानों के अंधियारो में,
मैं दीप जलाने निकला हूँ।
पाषाणों से टकराने को,
नभ चीर उड़ाने निकला हूँ।।
शूलों पर पग धर कर चलना,
अब क्या मुझे रोक पाएगा।
जो पर्वत भी राह रोकेगा,
वह भी धूल धरा बन जाएगा।।
पथ निर्बल का होता होगा,
मैं निर्भय, सिंह समान खड़ा।
जो लक्ष्य नयन में अंकित है,
वह शर संधान अविचल अड़ा।।
वज्र-व्रत लिए जो चलता है,
वह काल गति को मोड़ सके।
जो पुरुष न जीवन हार सहे,
वह पत्थर को भी तोड़ सके।।
निज स्वत्व, निज संकल्प लिए,
अब झुकने को तैयार नहीं।
चाहे विधि लख अवरोध गढ़े,
अब थकने को तैयार नहीं।।
अब रूको नहीं, अब झुको नहीं,
अब बाधाओं को रौंद बढ़ो।
यदि धधक उठे रण-रंग यहाँ,
तो प्रलय-पथों पर गर्ज उठो!
-इक़बाल सिंह “राशा”
मनिफिट, जमशेदपुर, झारखण्ड

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



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