खोया हुआ बसन्त
जैसे बसन्त ऋतु जाने के बाद,कोयल और कौवे में भेद करना मुश्किल हो जाता है,
बस उसी तरह इन बच्चों का बचपन मोबाइल में खो जाता है,
सच कहूं तो
बच्चों को लत ऐसी लगी कि अपनों से मेल ना खाता है ,जिसके हाथ में मोबाइल देख बस उसी के पास जाता है,
मोबाइल
यह मोबाइल क्या-क्या खा जाएगा,
सब कुछ पूरा दिन इसमें समा जाएगा,
फिर भी इसका पेट भरा नहीं,
यह लोगों के जज्बात का गया ,
और आजकल इसके आगे जीवन हार गया।
जो बच्चा अपने बचपन में घर में हल्ला सोर करता है
आजकल वहीं बच्चा मां पापा को इग्नोर करता है,
सारा जीवन पोस्ट ओर रील हो गया,
एक बार ज़िन्दगी की किताब खोलकर देखो ,
पीछे क्या क्या खो गया
-अशोक सुथार