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The Flower of WordThe Flower of Word by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

        

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Dastan-E-Shayra By Reena Kumari PrajapatDastan-E-Shayra By Reena Kumari Prajapat

कविता की खुँटी

                    

खोया हुआ बसन्त - अशोक सुथार

खोया हुआ बसन्त

जैसे बसन्त ऋतु जाने के बाद,कोयल और कौवे में भेद करना मुश्किल हो जाता है,
बस उसी तरह इन बच्चों का बचपन मोबाइल में खो जाता है,

सच कहूं तो
बच्चों को लत ऐसी लगी कि अपनों से मेल ना खाता है ,जिसके हाथ में मोबाइल देख बस उसी के पास जाता है,

मोबाइल
यह मोबाइल क्या-क्या खा जाएगा,
सब कुछ पूरा दिन इसमें समा जाएगा,

फिर भी इसका पेट भरा नहीं,
यह लोगों के जज्बात का गया ,
और आजकल इसके आगे जीवन हार गया।

जो बच्चा अपने बचपन में घर में हल्ला सोर करता है
आजकल वहीं बच्चा मां पापा को इग्नोर करता है,

सारा जीवन पोस्ट ओर रील हो गया,
एक बार ज़िन्दगी की किताब खोलकर देखो ,
पीछे क्या क्या खो गया


-अशोक सुथार




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रचना के बारे में पाठकों की समीक्षाएं (2)

+

Raghav said

Sach Kaha M khud Mobile m busy rhta hu..

Vineet Garg said

Bilkul sahi kaha aapane main auron ki to kya hi kahun kam khatm karne ke bad main khud mobile lekar baith jata hun😭😭 aur yah itni buri aadat hai ki chhutati hi nahin hai.

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