परिदृश्य-चित्रण------
एक पिताजी अपने नियम, मर्यादा, इत्यादि के चलते अपने एक पुत्र को अपने घर से निष्कासित कर देते हैं। पिताजी एक संपन्न परिवार से हैं। पुत्र सरकारी नौकरी कर रहा था परंतु एक दुर्घटना के कारण वह हैंडीकैप हो जाता है। दारू, शराब, जुआ, गांजा, लडाई झगड़ा, ये सारे ऐब नहीं हैं पुत्र में, विवाद केवल पिता पुत्र के आपसी नजरिए और जीवन जीने के स्तर और तरीकों का है। दोनों अपने स्वाभिमान की रक्षा करते हुए कर्म कर रहे हैं। महत्वपूर्ण विवाद का मुद्दा यह है कि पुत्र सत्यवादी है।
पुत्र के साथ उसकी धर्मपत्नी व दो छोटे बच्चे भी घर से चले जाते हैं, और वह हैंडीकैप होने के बावजूद अपने परिवार का भरण पोषण करने के लिए मजदूरी करने लगता है।
एक दिन पिताजी किसी तीसरे व्यक्ति के द्वारा पुत्र को अपने घर पर कुछ दिनों बाद होने वाले एक बड़ी पार्टी कार्यक्रम में आमंत्रित करवाते हैं। पुत्र के पास खाने पीने की समस्याएं चल रहीं हैं।
पैसे हैं ही नहीं। अब वह जाए तो जाए कैसे, क्या उन्ही पुराने फटे कपड़ों में?
तब............................
बहूमंजिला बृहद् इमारत,
और कांच जड़े उनके घर में,
तपे कढे पाथर के पत्थर,
हैं खूब खड़े उनके घर में,
सौ टन लौह दग्द दरवाजा,
सम-सा अंगद सा द्वारपाल,
अति-अत विशाल सब लाल-लाल,
और वज्रतुण्ड रोधी है जाल,
शूचाल-ज्वाल च जल-स्वचाल,
और पुष्प बड़े उनके घर में,
बहूमंजिला बृहद् इमारत,
और कांच जड़े उनके घर में............
नर्म रुई रेशम की बैठक,
बड़े लगे रानी के पलके,
आदम-कद आलिंगित दरपन,
क्या जाने निर्धन जन कल-के,
दो-दो अंग्रेजी अंग-रखे,
श्वान काल-विकराल पटल के,
वाहन-सम गजराज स्वयं ही,
बंधे पड़े उनके घर में,
बहूमंजिला बृहद् इमारत,
और कांच जड़े उनके घर में.........
हिय-मन-उर में प्रीति प्रज्जवलित,
कैसे प्रीतेन्द्र को समझाऊं,
ऐरावत पर शोभित जो अतुलित,
कैसे उन इन्द्र को दिखलाऊं,
धन-सम्पत-पद-मान-विभूषित,
सम-स्वर्गद्वार किस मूं जाऊ,
उस संध्या को बहुत जुड़ेंगे,
बड़े, बड़े-बड़े उनके घर में,
बहूमंजिला बृहद् इमारत,
और कांच जड़े उनके घर में...........
कोसों मील महा-महल-महस्थत, पर्वत्-पुर सी गर्जित गरिमा,
निर्धन पापी को आमंत्रित कर, सब-जन-सम-सृजनाई महिमा,
निर्गुण-निर्धन-निर्बल-निर्वस्त्र,
कैसे दूरी तय कर पायेगा,
पृथ्वी से स्वर्ग का रस्ता ना है,
क्या यात्रा सिद्ध कर पायेगा, अश्रु-गरल-वल-तरल-धार,
बहे धढ़े-धढ़े मन के अर में,
बहूमंजिला बृहद् इमारत,
और कांच जड़े उनके घर में...........
भीर गिरेगी धधा-अथित्य की,
समृद्धि की तूती चमकेगी,
छप्पन भोग का चोगा होगा,
जन-जन-तन जूती चमकेगी,
गंधर्व-यक्ष-गण नाचेंगे,
क्या छटा अनूठी चमकेगी,
उस दिन लोलुप का धद-धदाल,
मेला उम-अड़े उनके घर में,
बहूमंजिला बृहद् इमारत,
और कांच जड़े उनके घर में...........
शत-सदा वंदना चरनन की,
पर क्या वो छाती से लगायेंगे?
क्या जगेगा उनका पुत्र मोह,
क्या अबोध को सर पे बिठाएँगे?
जब सुबह का भूला लौटेगा,
क्या उसको वो अपनाएंगे?
क्या पुत्र मोह में वशीचूर हो,
दुनिया में आग लगाएंगे?
नहिं-नहीं खतम्-सब नहीं, नही,
कुछ सही नहीं कर पायेंगे,
कुछ भी समझ नही पाएंगे,
वो रहें अड़े उनके घर में,
बहूमंजिला बृहद् इमारत,
और कांच जड़े उनके घर में...........
VIJAY VARSAAL........................