लिखती हूँ...
और फिर लिख कर मिटा देती हूँ।
मैं अक्सर खुद को...
कभी सबसे,
तो कभी... खुद ही से छिपा लेती हूँ।
जहाँ हूँ,
जैसी हूँ,
जितनी हूँ...
बस उतनी ही... किसी एक के लिए... काफ़ी होना चाहती हूँ।
मैं नहीं चाहती...
कविता बन कर... किसी महफ़िल का शोर होना।
बस कोई समझ ले...
और संजो ले...
शब्दों में बुनी मेरी ख़ामोशी को,
और मेरी सहजता में सिमटी उलझनों को।
बस इतना ही... मशहूर होना चाहती हूँ।
मेरे अनगढ़ रूप में भी,
अगर कोई अपना कर... सरहाए मुझे,
तो चाहत में उसकी,
आसमान भी छू लेना चाहती हूँ।
कोई अपनाए...
बिना बदले... बिना तराशे मुझे,
तो उस अपनाए जाने में ही...
मैं दुनिया को अपनी सम्पूर्ण पाती हूँ।
जहाँ हूँ...
जैसी हूँ...
जितनी हूँ...
बस उतनी ही...
किसी एक के लिए... काफ़ी होना चाहती हूँ।
- प्रार्थना पाठक

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




