ज़मीर का सन्नाटा: इन्साफ़ क्यों सो गया?
वो जो आईना था अज़ल से, वो बेदाग़ ही क़ायम रहा, मैं तमाम उम्र जीता रहा, पर इल्म नाक़िस ही क़ायम रहा।
ज़रा देखो तो ज़माने की कैसी नई रीत हो गई, हर रात शहर में नशा है, और सुबह सीधी हो गई।
अरे वो लहजा जो इज़्ज़त का था, वो शर्म से झुकता नहीं, यहाँ ज़िस्म की लूट बढ़ती रही, सज़ा भी लचीली हो गई।
अख़बारों में दो दिन का शोर है, फ़िर ख़ामोशी गहन है, इन्साफ़ की बातें तो अवाम करती है, मगर आँखें नज़र बंद हो गईं।
उस ग़लती को शराब का असर बताया गया हर बार, अक़्ल जो होश में थी, वो क्यों अंधी और बदनाम हो गई?
हम सब फ़िक्र करते हैं कल्चर की, मगर ताक में बैठे हैं हर वक़्त, तहज़ीब भी दिखावा है अब, जब नीयत ही गंदी हो गई।
ये कैसा ज़हर है जो धीरे-धीरे रूह को खा जाता है, वो नशा जो दर्द मिटाने को था, वही तकलीफ़ की वजह हो गई।
क़ानून भी सोचता होगा, ये कैसी रस्म चली है यहां, शिकार भी शर्मिंदा है, और गुनहगार की ज़ुबान बुलंद हो गई।
हमने तस्वीरें ख़ूब खींचीं कि क्या गलत है मुल्क में, वो तस्वीर तो वायरल हो गई, पर असलियत गुम हो गई।
अरे यक़ीन करो वो दरिंदा बाहर नहीं, वो हमारे भीतर है, ज़मीर को नशा हो गया, तभी तो इन्साफ़ सो गया।

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




