रौशनी की दस्तक
by RP Mishra
बस इतना चाहूँ —
कि अँधेरों में भी कोई लौ मुस्कुराती रहे,
और इस बात का यकीन बना रहे
कि इंसान अब भी इंसान है।
कभी उम्मीद बन कर जले,
कभी किसी की आँखों में सपना बन कर टिमटिमाए —
यह रौशनी कहीं रुकनी नहीं चाहिए।
जब वक्त सख़्त हो,
तो एक दीया भी काफी हो राह दिखाने को,
और जब सब ओर उजाला हो,
तो वही दीया अपने अस्तित्व पर मुस्करा सके।
रातों की कालिख में भी
कोई मन में दीप सहेजता रहे,
क्योंकि जीना सिर्फ़ सांसों का सिलसिला नहीं —
यह खुद को जलाने का हुनर भी है।
रौशनी का मोल समझो,
यह किसी मंदिर की बाती नहीं,
किसी सच्चे आदमी के दिल की बात है —
जो जलते-जलते भी
किसी और के लिए रोशनी छोड़ जाता है।
बस इतना हो —
कि यह लौ बुझने न पाए,
और इंसानियत की छत तले
हर दिल में थोड़ी सी रौशनी बसती रहे।


The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra
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