आख़िर कुछ न दो
ओ… प्रभु……..कुछ न दो
पर…तेरी भक्ति की
रंगत मुझमें बेशूमार भर दो
हे नाथ मुझे चरणो में,
थोड़ी सी, पर पनाह दे दो
आरजू मारे विफल करें,
उसे अब सफल कर भी दो
तमन्ना की खाई गहरी उसे भर,
आबाद कर भी दो
माना क़सूर है हमारा,
हो सके तो माफ़ी दे भी दो
तेरी भक्ति मेरे रोम रोममें,
सागर जैसी भर भी दो
आज की नहीं सालों की पुकार
न्याय उसे भी दे दो
आवाज़ की ख़ामोशी कहें,
मौन अब तोड़ भी दो
चौखट पर तेरी करू मैं इबादत,
अखियां अब खोल भी दो
जन्म से मांगे हाथ पकड़,
भवसागर से उगार भी दो
न बनी मेरी किस्मत से…
कर्मों की सज़ा अब दे ही दो....

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




