जमाने के पीछे जमाना नहीं है,
भूल हुई क्यों, ना हम जाने।
घाव दे बैठे,
हमें दीवाने।।
विरक्त आनंद अब हमें कहां,
अनुरक्त शोक से सब सजे यहां,
हर हसरत को पूरी करेंगे हम,
यह हरकत के निशान नहीं है,
पूछे नहीं क्यों, ना हम पहचाने।
घाव दे बैठे,
हमें दीवाने।।
बेईमानी से हमने बदला मौसम,
ईमानदारी से भी हमें मिले जख्म,
जो पूछते थे कि जाने पर भी हाथ खाली है,
वह बताते ही नहीं कि आने पर भी क्यों रोए हम,
तुम्हें जीने पर भी चैन नहीं,
मर गए तो तुम रोए क्यों, यह खुदा ही सिलसिला जाने।
घाव दे बैठे,
हमें दीवाने।।
बदसूरत सूरत को हमें देखना नहीं है,
खूबसूरत नियत से दूर क्यों, आंखों की पट्टी हटाना न जाने,
घाव दे बैठे,
हमें दीवाने।।
- ललित दाधीच