आज रात किसी त्यौहार ने मेरा किवाड़ खटखटाया,
पूछने पर अपना नाम ‘दीपोत्सव’ बताया।
घर में मेरे शांति नहीं, सन्नाटा था।
न दाल, न चावल, न तेल, न आटा था।
बैठने को चारपाई नहीं,
एक पैर का टूटा हुआ पाटा था
दीवारों ने रो रोकर, खुद को जर्जर बना लिया है।
निर्जन अंधेरे ने इस घर को खंडहर बना दिया है
न भार्या, न बच्चे, न सखा - सहोदर,
इस प्यासे घर का कोई न सरोवर।
पूरे घर में कचरा फैला,
एक ही कुर्ता वो भी मैला।
न दीपक, न मोम , न प्रकाश की लड़ी,
न मिठाइयां, न पकवान और न ही फुलझड़ी।
फिर भी उसने किवाड़ खटखटाया
और पूछने पर नाम भी बताया?
मैंने आंसू छिपाते हुए किवाड़ खोला,
उसे अंदर आने को बोला।
उसका सौंदर्य देखकर,
मेरा मलिन मुख थोड़ा आहत हुआ।
कुछ और तो था नहीं,
अतः झूठी मुस्कान से ही स्वागत हुआ।
पहले तो कुछ बोल न फूटा,
अंदर था कुछ टूटा - टूटा।
ज़ुबान भी बाहर निकल न पाई,
पर जैसे तैसे अपनी व्यथा सुनाई।
पीड़ा सुनने के पश्चात,
पर वो निर्लज्ज, ठहाके मार गया।
दरिद्रता पर मेरी जैसे,
कोई अनंत तमाचे मार गया।
तू कहता है ये घर नहीं, शमशान है।
तो बता ये शमशान किसने दिया?
तेरे पास ज्यादा कुछ नहीं, पर जितना है,
उतना भी तुझे दान किसने दिया?
टूटा पाटा, मैला कुर्ता और
सन्नाटे का आसमान किसने दिया?
चल छोड़ दे ये सब छोटी बातें, बस ये बता,
इस अंधकार में तेरी दरिद्रता का,
ज्ञान किसने दिया?
घोर अन्धकार से कोई,
नन्हा दीपक खोज के लाया वो।
तर्जनी से बाती तक एक लौ,
जलाकर उसने जो दिखलाया तो,
देखा मैने चमत्कार,
पूरे घर में दीपों की कतार।
दीवार पे फूलों की माला,
सहसा ही हुआ मन मतवाला।
मिष्ठान भी है, पकवान भी है
देवों का यहां आह्वान भी है।
रंगोली से द्वार शुशोभित हैं,
और लक्ष्मी का स्थान भी है।
बदन पे केवल कपड़ा नहीं,
रत्नजड़ित परिधान भी है।
परिवार, सखा पूजन को बैठे,
एक दीप ने किया चमत्कार ये कैसे।
पूरा घर कान्ति - मान किया है ऐसे,
नन्हा दीप नहीं कोई सूर्य हो जैसे।
नतमस्तक हूं मैं, दीपोत्सव तुम्हारे,
धन्य थे भाग्य, जो तुम यहां पधारे।
इतना सुनते उसके मुख पर,
हल्की सी मुस्कान झलकाई।
अपनी मनशा अंत में उसने
कुछ इस प्रकार मुझे बतलाई,
ये दीप बना है जलने को,
तत्पश्चात अंधकार जलाने को,
तू देख ज़रा उस दीप की ओर,
वो चाहता है कुछ बतलाने को।
एक श्रेष्ठ सखा बन जाने को,
और नींद से तुझे जगाने को
पीड़ा पर मरहम बन जाने को,
तुझको प्रेम सिखाने को।
वैभव तेरे घर में ही है,
बस तेरी दृष्टि जगाने को।
तुझे ही जाना है उसे
अंधकार से खोज के लाने को।
ये दीप बना है जलने को,
तत्पश्चात अंधकार जलाने को।
तू देख ज़रा उस दीप की ओर,
वो चाहता है कुछ बतलाने को।

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




