संग्राम की घड़ी आज है
विश्राम की घड़ी है नही
अविराम चलता समय हे
जो क्षण तलक रुकता नहीं
माना मुशाफिर झेलते हैं
आपदा के बादल घने
ललकार दो उस शत्रु को
जो राह की बाधा बने
अब तमस की रात बीती
बन उजाला भोर कर तू
पथ पे अपने बढ़ पथिक
कहीं तू बिछड़ जाए नहीं
संग्राम की घड़ी आज हे
विश्राम की घड़ी हे नहीं
अविराम चलता समय है
जो क्षण तलक रुकता नहीं
ऐसे तो राही खूब हैं ,
बस चल पड़े हैं
कुछ ही हैं जो ,
राह में डट कर खड़े हैं
राह हे ये राह मत समझो इसे
ये गगन की सीढ़ियां लांघो इसे
इनपे तेरे पाव के भी
इक दिन निशा होंगे
याद करेगी पीढ़ियां
जब तेरे किस्से बयां होंगे
जो समय हे आज ,
कल शायद होगा नहीं
पथ पे अपने बढ़ पथिक
कहीं तू पिछड़ जाए नहीं
संग्राम की घड़ी आज है
विश्राम की घड़ी है नहीं
अविराम चलता समय है
जो क्षण तलक रुकता नहीं