ग़र इश्क़ नहीं होता,
तो करते क्या ज़माने में !!
शायर भी भला कैसे,
रंग भरते तराने में !!
बिन आँखों की भाषा के,
इज़हार कहाँ होता !!
चाहत के सिवा कहिये,
रक्खा क्या ख़जाने में !!
जीते तो मगर जीने में,
रंगत ही नहीं होती !!
रब दिखता भी तो कैसे,
आँखों के फसाने में !!
- काव्य प्रेम गीत वेदव्यास मिश्र की कलम से..
सर्वाधिकार अधीन है